Class 11 Hindi Antra Chapter 15 Question Answer जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले
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Class 11 Hindi Chapter 15 Question Answer Antra जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले
जाग तुझको दूर जाना –
प्रश्न 1.
‘जाग तुझको दूर जाना’ कविता में कवयित्री मानव को किन विपरीत परिस्थितियों से आगे बढ़ने के लिए उत्तर-‘ जाग तुझको दूर जाना’ कविता में मानव के सामने अनेक विपरीत परिस्थितियाँ हैं :
- हिमगिरि के हृदय में केंपन हो रहा है।
- प्रलय आ रहा है।
- घोर अंधकार छाया हुआ है।
कवयित्री मानव को इन विपरीत परिस्थितियों में भी मानव को निरतर अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही है।
प्रश्न 2.
‘मोम के बंधन’ और ‘तितलियों के पर’ का प्रयोग कवयित्री ने किस संदर्भ में किया है और क्यों ?
उत्तर :
मोम के बंधन-इसमें प्रेयसी के भुजपाश का अर्थ निहित है। ये पाश मोम की भाँति कोमल हैं।
तितलियों के पर – इसमें सुंदर युवतियों के आकर्षण जाल (बहुरंगी पंख) का अर्थ निहित है।
प्रश्न 3.
कवयित्री किस मोहपूर्ण बंधन से मुक्त होकर मानव को जागृति का क्या संदेश दे रही है ?
उत्तर :
कवयित्री अपने परिवार जनों के मोहपूर्ण बंधन से मुक्त होकर मानव की जागृति का संदेश दे रही है। मोम बंधन (प्रेयसी के भुजपाश का बंधन), सांसारिक आकर्षण का बंधन व्यक्ति के निद्रित बनाता है। मनुष्य को इन बंधनों से मुक्त होना है तभी वह जागरण का संदेश दे सकेगा।
प्रश्न 4.
कविता में ‘अमरता-सुत’ का संबोधन किसके लिए और क्यों आया है ?
उत्तर :
कविता में अमरता सुत का संबोधन संघर्ष करने की क्षमता से सम्पन्न मानव समूह को कहा गया है।
जीवन पथ पर चलते रहने वाले मनुष्यों को तमाम तरह की समस्याओं-कठिनाइयों आदि का सामना करना पड़ता है। संघर्ष में लगे लोगों की जानें जाती हैं, किंतु संघर्ष करने की क्षमता कभी कुंद नहीं पड़ती। मानवीय चेतना की मृत्यु नहीं हो सकती। उसके लिए आलस्य या अकर्मण्यता मृत्यु के समान है। इसीलिए कवयित्री ‘अमरता सुत’ का संबोधन चेतनाशील और संघर्शशील मनुष्यों के लिए करती हैं।
प्रश्न 5.
‘जाग तुझको दूर जाना’ स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित एक जागरण गीत है। इस कथन के आधार पर कविता की मूल संवेवना लिखिए।
उत्तर :
इस कविता में कवयित्री महादेवी वर्मा स्वाधीनता आंदोलन में देशवासियों को बढ़-चढ़ कर भाग लेने की प्रेरणा देती है। यह एक जागरण गीत है। उस समय देशवासी आलस्य में पड़े हुए थे। उन्हें जगाने की आवश्यकता थी। कवयित्री उन्हें उनका लक्ष्य निर्देशित करते हुए साधना-पथ की कठिनाइयों के प्रति भी सचेत करती है। वह उसे बताती है कि उसे कठिनाइयों की भीषणता से घबराना नहीं है और न ही कोमल बंधनों के आकर्षण-जाल में उलझना है। मार्ग की कठिनाइयाँ और रूपसी नारी के मोह-बंधन दोनों ही लक्ष्य प्राप्ति के प्रयासों को धक्का पहुँचाते हैं। ये आकर्षण व्यक्ति को भ्रमित कर कमजोर करते हैं। असफलताओं से उत्पन्न निराशा भी व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकती है। कवयित्री जीवन की सत्यता से भली प्रकार परिचित है अतः उनका उल्लेख कर देशवासियों को दृढ़ बनाना चाहती है। इस मार्ग पर हार भी जीत के समान समझनी चाहिए। यद्यपि यह मार्ग कठिन अवश्य है, पर असाध्य नहीं।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
(क) विश्व का क्रंदन ……………… अपने लिए कारा बनाना।
(ख) कह न ठंडी साँस ………………… सजेगा आज पानी।
(ग) है तुझे अगर शय्या ………………. कलियाँ बिछ्हाना।
उत्तर :
(क) भौरों की मधुर गुंजार को विश्व क्रंदन भुला देगा। फूल के दल (ओस से भीगे) क्या व्यक्ति को अपने रूप-रंग के जाल में फँसा लेंगे। व्यक्ति को अपनी छाँह को ही अपनी कैद नहीं बना लेना चाहिए क्योंकि उसे बहुत दर तक जाना है। इन पंक्तियों में प्रतीकात्मकता का समावेश है। भौंरों की गुंजार, फूलों का आकर्षण सांसारिक आकर्षणों के प्रतीक हैं जो व्यक्ति के रास्ते में बाधा उपस्थित करते हैं। व्यक्ति को किसी भी चीज के बंधन में नहीं बँधना चाहिए। ‘कारा’ में लाक्षणिकता का समावेश है।
(ख) इन पंक्तियों में कवयित्री अपनी असफलताओं की कहानी को निराशा के भाव से दोहराने को मना करती है। इससे मन में निराशा की भावना आती है। इसके विपरीत हूदय में उत्साह का भाव होना चाहिए तभी आँखों में आत्मसम्मान की चमक सजती है! दूसरों के प्रति संवेदना का अर्थ भी व्यंजित होता है।
- कविता में रहस्यवादी प्रभाव है।
- भाषा में रहस्यात्मकता का समावेश है।
प्रश्न 14.
‘सपने-सपने में सत्य ढला’ पंक्ति के आधार पर कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कविता की मूल संवेदना यह है कि प्रत्येक व्यक्ति का सत्य अपना होता है। जो सत्य है, यथार्थ है और जो लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करता है वह प्रत्येक व्यक्ति के सपने में पलता रहता है। प्रकृति के परिवर्तनशील यथार्थ से जुड़कर मनुष्य अपने सपनों को साकार करता है।
योग्यता-विस्तार –
1. स्वाधीनता आंदोलन के कुछ जागरण गीतों का एक संकलन तैयार कीजिए।
– छात्र पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर ऐसा संकलन स्वयं तैयार करें।
2. महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं को पढ़िए और महादेवी वर्मा की पुस्तक ‘पथ के साथी’ से सुभद्रा कुमारी चौहान का संस्मरण पढ़िए तथा उनके मैत्री-संबंधों पर निबंध लिखिए।
– महादेवी वर्मा तथा सुभद्रा कुमारी चौहान एक ही स्कूल में पढ़ती थीं। चौहान उनसे सीनियर थीं। वे कविताएँ भी लिखती थीं। वहीं दोनों की मित्रता हुई जो जीवनपर्यत चली। दोनों घनिष्ठ सहेली थीं।
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प्रश्न 1.
कैसी आँखों का उनींदापन देखकर कवयित्री को उन्हें जगाना आवश्यक प्रतीत हुआ?
उत्तर :
चिर सजग आँखों का उनींदापन देखकर कवयित्री को उन्हें जगाना आवश्यक प्रतीत हुआ। ये आँखें तो सदैव जागरूक रहती थीं, पर आज उनींदी हैं-क्यों?
प्रश्न 2.
कवयित्री ने किन उदाहरणों के द्वारा ‘नाश-पथ’ का रूपांकन किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवयित्री ने ‘नाश-पथ’ का रूपांकन करने के लिए अचल हिमगिरि के ह्ददय को काँपने, मौन आकाश में प्रलंयकारी आँसुओं का बहना, प्रकाश को पीकर घोर अंधकार के छा जाने, बिजली की गड़गड़ाहट तथा भयंकरता में पूर्ण कठोरता और नाशवान तूफान के घिर आने के उदाहरण दिए हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
(ख) आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी!
(ग) है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!
उत्तर :
(क) पथिक संघर्ष मार्ग में थककर बैठ मत जाना क्योंकि व्यक्ति की अपनी परछाई ही उसे विश्राम करने को बाध्य करती है। यह छाया उसके लिए कारागार के समान बन जाती है। ऐसी स्थिति में उसका प्रगति मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
(ख) इस पंक्ति में कवयित्री बताना चाहती है कि संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ने के लिए आग अर्थात् उत्साह का होना अत्यंत आवश्यक है। तभी उसकी आँखों में आत्म सम्मान की चमक आएगी।
(ग) इस पंक्ति का आशय यह है कि संघर्ष-पथ के राही को अनेक प्रकार के कष्टों के मध्य में भी कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति करनी है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
(क) वज्र का उर एक छोटे अश्रु-कण में धो गलाया, दे किसे जीवन सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया?
(ख) कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी, आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी।
उत्तर :
(क) इन पंक्तियों में व्यंग्यार्थ निहित है। कवयित्री ‘जीवन-पथ के राही को स्मरण कराती है कि उसका ह्वदय तो वज्र के समान कठोर था, उसे किसी करुणामयी याद के कारण आँसुओं से धोकर गला दिया। अपने जीवन की अमरता, सुख शांति और आनंद को किसी को देकर किसी से दो घूँट शराब मांग लाया अर्थात् जीवन अमृत के बदले घटिया वस्तु का सौदा कर बैठा अर्थात् व्यक्ति कष्टों और बाधाओं से हार मान बैठा।
‘जीवन-सुधा’ में रूपक अलंकार का प्रयोग है। ‘दो घूँट मदिरा’ का प्रतीकार्थ है-क्षणिक सुखानुभूति प्रदान करने वाले घटिया भौतिक पदार्थ। प्रश्नात्मक शैली का अनुसरण किया गया है।
(ख) इन पंक्तियों में कवयित्री अपनी असफलताओं की कहानी को निराशा के भाव से दोहराने से मना करती है। इससे मन में निराशा की भावना आती है। इसके विपरीत हृदय में उत्साह का भाव होना चाहिए तभी आँखों में आत्मसम्मान की चमक सजती है। दूसरों के प्रति संवेदना का अर्थ भी व्यंजित होना है। ‘उर में आग का होना’ में लक्षणा शक्ति का प्रयोग है। इसका लक्ष्यार्थ है-हृदय में उत्साह का होना। ‘पानी’ शब्द में श्लेष अलंकार है-‘पानी ‘ आत्मसम्मान और अश्रुजल (संवेदना) दोनों अर्थों की व्यंजना कर रहा है।
प्रश्न 5.
इस गीत के आधार पर महादेवी वर्मा की भाषा-शैती पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
नहादेवी वर्मा छायावाद की सशक्त कवयित्री हैं। छायावादी कविता में परिष्कृत खड़ी बाली का प्रयोग है। इसमें तत्सम शब्दों की बहुलता है। महादेवी वर्मा के गीतों में भी तत्सम शब्द प्रयुक्त हुए हैं, जैसे-क्रंदन, व्योम, विद्युत-शिखा, वज्र, अश्रुकण, शय्या आदि। इसके साथ-साथ उन्होंने तद्भव और देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है, जैसे-उनींदी, निठुर, गुनगुन, शंदि आदि।
महादेवी वर्मा के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारण अत्यंत आकर्षक हैं। इन गीतों में लाक्ष्णिकता, चित्रात्मकता और बिंबधर्मिता है। उन्होंने नए बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगीत की अभिव्यक्ति शक्ति को नया आयाम दिया है। उपमा, रूपक, उत्र्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकार उनके काव्य में तहज रूप में आ गए हैं।
प्रश्न 6.
नाश-पथ पर अपने चिह्न छोड़ना किसको संबोधित है?
उत्तर :
नाश-पथ पर अपने चिह्न छोड़ना बलिदानियों को संबोधित है। ऐसे व्यक्ति अपना बलिदान देकर पथ पर अपने चरण-चिह्न छोड़ जाते हैं।
प्रश्न 7.
‘तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना’ का क्या आशय है?
उत्तर :
इसका आशय यह है कि आगे बढ़ने के लिए अपनी ही परछाई को बंधन बनाकर अपनाओ नहीं।
प्रश्न 8.
इस कविता में महादेवी वर्मा ने आँसू को किन-किन रूपों में प्रस्तुत किया है?
उत्तर :
इस कविता में महादेवी वर्मा ने आँसू को प्रलय के रूप में मोती के रूप में तथा आग के रूप में प्रस्तुत किया है।
प्रश्न 9.
‘जिसने उसको ज्वाला सौंपी…….कब फूल जला’ छंद में फूल और सौरभ का क्या भाव प्रकट किया गया है?
उत्तर :
इसके माध्यम से यह भाव प्रकट किया गया है कि कोई ज्वाला सौंपता है तो कोई मकरंद भरता है। कोई (दीपक) अपना प्रकाश लुटाता है तो कोई (फूल) सुंगध फैलाता है। दोनों परोपकार करते हुए भी पृथक-पृथक व्यक्तित्व रखते हैं।
प्रश्न 10.
निर्झर सुर-धारा और मोती को महादेवी ने किस तरह आँसू से जोड़ा है?
उत्तर :
झरने में अमृत की धारा बहती है और पानी से मोती निकलता है। इसी प्रकार व्यक्ति के हृदय से, आँखों से जो आँसू निकलते हैं वे भी मोती के समान पवित्र और चमकदार होते हैं।
प्रश्न 11.
‘हार भी तेरी बनेगी……कलियाँ बिछाना’ पंक्तियों में पतंग और दीपक की किन विशेषताओं को महादेवी वर्मा ने रेखांकित किया है?
उत्तर :
पतंगा दीपक की लौ पर अपने प्राण न्यौछावर कर देता है। यद्यपि वह हार जाता है पर उसकी राख उसे अमरता प्रदान कर देती है। बलिदानी व्यक्ति को भी अपनी कोमल भावनाओं को न्यौछावर करना होगा। कवयित्री ने पतंगे की बलिदानी भावना की विशेषता को रेखांकित किया है और दीपक की आलोक (प्रकाश) देने की विशेषता को दर्शाया है।
प्रश्न 12.
संघर्षों और असफलताओं की कहानी को ठंडी साँस में कहना क्या व्यंजित करता है?
उत्तर :
संघर्षों और असफलताओं की कहानी को ठंडी सांस में कहना यह अभिव्यंजित करता है कि पथिक के मन में गहरी निराशा का भाव है। वह अपनी असफलताओं को भुला नहीं पा रहा है।
प्रश्न 13.
‘प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है’-इस भाव को किस उदाहरण के द्वारा पुष्ट किया गया है?
उत्तर :
इस भाव को कवयित्री ने पतंगे और दीपक के उदाहरण के माध्यम से पुष्ट किया है। पतंगा दीपक लौ में प्राण गँवाकर भी प्रेम में जीत जाता है।
प्रश्न 14.
मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने किन-किन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर :
मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने निम्नलिखित प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है:
- मोम के बंधन
- तितलियों के रंगीले पर
- मधुप (भौंरों) की मधुर गुनगुन
- ओस से भीगे फूल के दल
प्रश्न 15.
प्रत्येक छंद के अंत में “चिद्न अपने छोड़ जाना, अपने लिए कारा बनाना, मृत्यु को उर में बसाना, मृदुल कलियाँ बिछाना” का संदेश देकर मनुष्य के किन गुणों को विस्तार देने की बात कविता में कही गई है?
उत्तर :
उपर्युक्त बातों का संदेश देकर कवयित्री ने देशवासियों को निरंतर आगे बढ़ते जाने, स्वनिर्मित बंधनों में रहने, मृत्यु से भयभीत न होने तथा मार्ग को सुगम बनाने आदि गुणों को विस्तार देने की बात कविता में कही है। कवयित्री चाहती है कि व्यक्ति निरंतर संघर्ष करता रहे, भले ही उसे मार्ग में पराजय का सामना क्यों न करना पड़े।
प्रश्न 16.
आधुनिक गीतकारों में महादेवी वर्मा का स्थान निर्धारित कीजिए।
उत्तर :
गीतिकाव्य वह होता है जो संगीत की माधुरी से युक्त आत्मपूरक होता है। इस प्रकार का काव्य कल्पना प्रधान होते हुए अनुभूति से भी युक्त होता है। हिंदी में गीतिकाव्य की परंपरा ‘बीसलदेव रासो’ से आरंभ होती है जो नरपति नाल्ह द्वारा रचित है। महादेवी का गीत सरस, स्वाभाविक तथा रोचक है। इसमें प्रतीकात्मकता तथा रागात्मकता का सुंदर निरूपण हुआ है। इनका गीतिकाव्य, आत्मनिवेदन के रस से सराबोर है। जितनी विशेषताए, महादेवी के काव्य में देखने को मिलती हैं उतनी किसी और अन्य कवि के काव्य में नहीं मिलती हैं। महादेवी की गीतियाँ विरहिणी के प्रिय के प्रति आत्मनिवेदन, याचना, दैन्यता आदि भावों से अनुप्राणित एवं तरलायित हैं। वहाँ सामान्य से सामान्य भाव का भी गहन, स्वाभाविक गीतिमय चित्रण उपलब्ध होता है।
प्रश्न 17.
कविता के अंतिम छंद में ‘सपने-सपने में सत्य ढला’ का संदर्भ देकर पूरी कविता का भावार्थ लिखिए।
उत्तर :
कवयित्री यह कहना चाहती है कि प्रत्येक व्यक्ति के सपने में सत्य की मात्रा अवश्य होती है। पूरी कविता के भावार्थ के लिए कविता का सार पढ़ें।
प्रश्न 18.
‘यह कविता सपनों को सत्य में ढालने का संदेश है – इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर :
हाँ, यह कविता सपनों को सत्य में ढालने का चित्रण करती है। हम इससे पूरी तरह सहमत हैं। प्रत्येक व्यक्ति के मन में जो स्वप्न पलता है, उसमें सत्य का अंश अवश्य रहता है भले ही यह किसी को दिखाई दे अथवा न दे।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
प्रश्न 19.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले ?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इस काव्यांश में कवयित्री बताती है कि भौरों की मंद-मंद मधुर गुनगुनाहट विश्व में चारों ओर गूँजते चीखते-रोते विश्व के रोदन को भुला नहीं पाएगी। फूल की पंखुड़ियों पर पड़ी ओस की बूँदे दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति को अपने रंग में नहीं डुबो सकते। देश पर बलिदान देने वाले व्यक्ति इन आकर्षण के जाल से मुक्त रहते हैं। वे अपनी छाया अर्थात् आश्रय को अपना बंधन नहीं बनाते क्योंकि उन्हें दूर तक जाना होता है। उसे अपना लक्ष्य प्राप्त करना है।
शिल्प-सौंदर्य :
- इन पंक्तियों में प्रतीकात्मकता का समावेश है। भौंरों की गुंजार, फूलों का आकर्षण सांसरिक आकर्षणों के प्रतीक हैं।
- ‘कारा’ में लाक्षणिकता है।
- ‘मधुप की मधुर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
- प्रश्न-शैली का अनुसरण किया गया है।
- भाषा में चित्रात्मकता का समावेश है।
प्रश्न 20.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दुग में सजेगा आज पानी;
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इन पंक्तियों में कवयित्री अपनी असफलताओं की कहानी को निराशा के भाव से दोहराने को मना करती है। इससे मन में निराशा की भावना पनपती है। इसके विपरीत हमारे हृदय में उत्साह का भाव होना चाहिए, तभी आँखों में आत्मसम्मान की चमक, सजती है। अर्थात् हृदय में दृढ़ता और आँखों में आत्मसम्मान का भाव बना रहना चाहिए।
शिल्प-सौंदर्य :
- ‘उर में आग होना’ में लक्षणा शब्दशक्ति का प्रयोग है। लक्षणार्थ : हृदय में उत्साह होना।
- ‘पानी’ शब्द में श्लेष अलंकार का प्रयोग है। दो अर्थ हैं: पानी और सम्मान।
- तत्सम शब्द बहुल खड़ी बोली अपनाई गई है।
प्रश्न 21.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना! जाग तुझको दूर जाना!
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : कवियत्री क्रांतिकारी को संबोधित करते हुए कहती है कि उसे अंगार की सेज पर कोमल कलियों (भावनाओं) को बिछाना है। अर्थात् उसे बलिदान-पथ पर अपनी कोमल भावनाओं की बलि चढ़ानी है। तुझे अभी बहुत दूर तक जाना है।
शिल्प-सौंदर्य :
- ‘अंगार शय्या’ में रूपक अलंकार है।
- ‘अंगार शय्या पर मधुर कलियाँ बिछाना’ में विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है।
- छायावादी कविता का प्रभाव लक्षित हो रहा है।
- तत्सम शब्द बहुल ख़ड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 22.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
विश्व का क्रन्दन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन, क्या डूबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले ? तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना !
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : कवयित्री कहती है कि भौरों की मधुर गुंजार विश्व क्रन्दन भुला देगा। फूल के दल (ओस से भीगे) क्या व्यक्ति को अपने रूप-रंग के जाल में फँसा लेंगे ? व्यक्ति को अपनी छाया को ही अपनी कैद नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि उसे बहुत दूर तक जाना है।
कला शिल्प : कवयित्री ने इन पंक्तियों में प्रतीक का प्रयोग किया है। भौरों की गुंजार, फूलों का आकर्षण, सांसरिक आकर्षण के प्रतीक हैं। यही व्यक्ति की राह में बाधा बनते हैं। व्यक्ति को किसी भी तरह के बंधन में बँधन नहीं चाहिए। कारा में लाक्षणिकता (तत्सम शब्दावली) का समावेश है।
प्रश्न 23.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
संसुति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपनी साधों के क्षण गिन लो।
जलते खिलते बढ़ते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला!
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : कवयित्री का कहना है कि संसार की प्रत्येक पद-चाप से मेरी साँसों की नई-नई छाप अंकित हो रही है। उसे तुम तो चुन लो। मेरे हर समय बनने और मिटने में तुम अपनी अभिलाषाओं के पल गिन लो अर्थात् मुझमें जो जीवन-रस तथा आकांक्षाएँ हैं, वही तुम्हारे में भी हैं, वही सारी सृष्टि में भी हैं। वेदना में जलते हुए और प्रसन्नता में खिलते हुए जीवन के विविध रंगों को हृदय में अनुभूत कर प्रत्येक सपने में एक सत्य समाया हुआ है।
शिल्प-सौंदर्य :
- ‘प्रति पग’ में अनुप्रास अलंकार है।
- तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है।
- छायावादी प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है।
प्रश्न 24.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंवर्य स्पष्ट कीजिए :
वज्र का उर एक छोटे अश्रु-कण में धो गलाया।
वे किसे जीवन सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इन काव्य-पंक्तियों में कवयित्री जीवन-पक्ष के राही को याद कराती है कि उसका हृदय तो वज्र के समान कठोर था, उसे किसी ने करुणामयी याद के कारण आँसुओं से धोकर गला दिया। उसने जीवन की अमरता, सुख और शांति और आनंद किसी को दे दिया और उसके बदले दो घूँट शराब माँग लाया। कहने का अभिप्राय यह है कि उसने जीवन अमृत के बदले घटिया वस्तु का सौदा कर लिया। वह कष्टों और बाधाओं के सामने हार मान बैठा।
शिल्प-सौंदर्य :
- जीवन-सुधा में रूपक अलंकार है।
- दो घूँट मदिरा का प्रतीकार्थ है कि क्षणिक सुखानुभूति प्रदान करने वाला घटिया भौतिक पदार्थ ग्रहण कर लिया।
- प्रश्नात्मक शैली है।
प्रश्न 25.
निम्नलिखित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए: है तुझे अंगार शव्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना। जाग तुझको दूर जाना।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इन काव्य-पंक्तियों में महादेवी वर्मा क्रांतिकारी को संबोधित करते हुए कह रही है कि अभी तुझे दूर तक जाना है। तुझे तो अंगारों की सेज पर कोमल पत्तियाँ (भावनाएँ) को बिछाना है अर्थात् बलिदान के पथ पर अपनी कोमल भावनाओं की बलि चढ़ानी है। तुझे अभी लंबी यात्रा तय करनी है।
शिल्प-सौंदर्य :
- ‘अंगार-शय्या(में रूपक अलंकार का प्रयोग है।
- ‘अंगार-शय्या पर मधुर कलियाँ बिछाना’ में विरोधाभास अलंकार’ का प्रयोग है।
- छायावादी कविता का प्रभाव लक्षित हो रहा है।
- तत्सम शब्द बहुला खड़ी बोली का प्रयोग है।
- संबोधन शैली प्रयुक्त हुई है।
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